वृहत्पाषाणिक समाधियां
बिहार के रोहतास जिले की कैमूर पहाड़ी में पहली बार बृहत्पाषाणिक या महापाषाणिक सांस्कृतिक स्थलों का पुरातात्विक अन्वेषण हुआ है। कैमूर पहाड़ी पर प्राचीन काल से ही निशाद-वंशी जनजातियों-खरवार, मुंडा और संथाल के अतिरिक्त द्रविड़-वंशी उराँव जनजाति का बसाव रहा है। निशाद-वंशियों की शाखा मुंडा और संथाल तथा द्रविड़-वंशी उराँव, तीनों जनजातियों में महापाषाणिक शवाधान की परंपरा आदि काल से है। यह परंपरा आज भी जारी है। अतः कैमूर पहाड़ी में महापाषाणिक संस्कृति के अवशेषों का होना अवश्यंभावी था। हाल के दिनों में बिहार की कैमूर पहाड़ी के दो स्थलों से ‘संगोरा समाधियाँ’ और ‘पाषाण स्तंभों’ की खोज हुई है। इनमें से एक स्थल रोहतासगढ़ से पाँच बृहत्पाषाणिक स्थलों की खोज हुई है। इनमें अनेक ‘संगोरा समाधियाँ’ हैं। यहीं दो स्थानों पर दो जोड़े ‘पाषाण स्तंभ’ भी हैं। स्तंभों के ऊपर छोटा चूचुक बना है। दूसरे महापाषाणिक सांस्कृतिक स्थल हुरमेटा, नौहट्टा प्रखंड पर छोटे बड़े आठ पाषाण स्तंभ (मेनहीर) खड़े हैं। पहले यहाँ ३० से अधिक पाषाण स्तंभ खड़े थे। इन्हें उखाड़कर अपने उपयोग में ले लिया गया। अनुमानतः ये समाधियाँ १५०० ईस्वी पूर्व से ५०० ईस्वी पूर्व के मध्य की हैं। कैमूर पहाड़ी में इन समाधियों का मिलना न केवल बिहार के पुरातत्व के सन्दर्भ में अतिमहत्वपूर्ण है बल्कि यह भारतीय पुरातत्व के लिए मील का पत्थर साबित होगा।
कैसे पहुंचें:
बाय एयर
निकटतम हवाई अड्डे - पटना, गया एवं वाराणसी.
ट्रेन द्वारा
निकटतम रेलवे स्टेशन - सासाराम.
सड़क के द्वारा
पुरानी जी.टी रोड पर अवस्थित है. पटना, आरा, दिल्ली, कोलकाता, रांची इत्यादी से जुड़ा है.