शैलचित्रांकन / शैलोत्कीर्णन / शिलालेख
बारहमसिया मान का शैलचित्रांकन
सासाराम का बारहमसिया शैलाश्रय में एक स्थान पर लाल रंग से शैलचित्र बने हैं। यहाँ दस बड़ी मानवाकृतियाँ हाथ फैलाय खड़ी हैं, जो प्राचीन हैं। इनके ऊपर अध्यारोपित शैलचित्र में एक आदमी तीर-धनुष से बारहसिंगा, जो गाढ़े लाल रंग का है, उसका शिकार कर रहा है। उसके साथ एक कुत्ता है।
घोरघट घाटी मान का शैलचित्रांकन
यह बड़ा शैलाश्रय घोरघट घाटी सासाराम में है। दिवार पर मानव के एक समूह को आगे जाते हुए दिखाया गया है। ये चित्र छोटे-छोटे हैं। इनके सामने एक पशु का रेखांकन है। इसका अस्थिपंजर दिख रहा है। ऐसा लग रहा है कि इसका शिकार करने के लिए लोग आगे बढ़ रहे हैं।
तरवाखाल मान के शैलचित्रांकन
यह शैलाश्रय रोहतासगढ़ के ‘कझिया’ पहाड़ी में अवस्थित है। इससे लगभग १५० मीटर बाद दूसरी छोटी पहाड़ी है, जिसे ‘तरवाखाल मान पहाड़ी’ कहते हैं। ढोके के उत्तरी और दक्षिणी भाग में बैठने की जगह है, जहाँ चट्टान में एक पट्टियाँ बनती है।
हथिया मान का शैलोत्कीर्णन
सासाराम के हथियामान में उकीरे गये हाथियों के कारण इसका नाम ‘हथिया मान’ पड़ा। दक्षिण-पश्चिमाभिमुख इस शैलाश्रय में ऐतिहासिक काल में कई आकृतियों को पत्थर पर उत्खचन करके शैलोत्कीर्णन किया गया है। इनमें पाँच हाथियों के अतिरिक्त तीन सोलह गोटिया खेल खेलने के लिये और दो खेलने के लिये ही चौपड़ या चौसर का उत्कीर्णन है।
फुलवरिया शिलालेख
फुलवरिया गाँव, रोहतास जिले के तिलौथू प्रखंड के अंतर्गत लगभग 1500 फीट की ऊँची पहाड़ी के ऊपर जंगल में बसा हुआ है। वैसे तो यह गाँव अपने दामन में कई पुरातात्त्विक साक्ष्यों को समेटे हुए है, लेकिन खयरवाल वंश के नायक प्रताप धवल देव ने यहाँ अपना दूसरा शिलालेख लिखवाया है, जिससे इस गाँव का पुरातात्त्विक महत्त्व है। यह शिलालेख खयरवाल वंष का एक दस्तावेज है, जिससे पूरी वंशावली का पता चलता है। फुलवारिया शिलालेख कैमूर-रोहतास क्षेत्र के नायक प्रताप धवल देव द्वारा विक्रम संवत् 1225 के वैशाख माह, कृष्ण पक्ष की बारहवीं तिथि, बृहस्पतिवार (27 मार्च 1169 ई0) को लिखवाया गया था। इस शिलालेख की भाषा संस्कृत है और लिपि प्रारंभिक नागरी। शिलालेख का निचला भाग पाँच पंक्तियों में मोटे अक्षरों में संस्कृत में है। इस शिलालेख के अनुसार प्रताप धवल देव ने नदी और पर्वत पर मार्ग बनवाया तथा सोपान निर्मित कराया।
चंदन शहीद पहाड़ी पर अशोक का लघुशिलालेख
तीसरे मौर्य सम्राट अशोक का शासनकाल 272-232 ई0 पू0 तक रहा है। वह बौद्ध धर्म से प्रभावित था। उसने अपने धर्म के प्रसार के क्रम में जगह-जगह अभिलेखों को लिखवाया। अशोक के अभिलेख उत्तर-पश्चिम में कंधार से लेकर पूरब में बिहार तक तथा उत्तर में देहरादून के कालसी से लेकर दक्षिण में कर्नाटक तक पाये जाते हैं। इनमें अधिकतर अभिलेख प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि में हैं। कुछ अभिलेखों की लिपि खरोष्टी है। अभिलेखों को उत्कीर्ण कराने के पीछे सम्राट् की यह मंशा रही होगी कि उसके संदेशों को स्थानीय भाषा और लिपियों में प्रचारित-प्रसारित कराया जाय जिससे अधिकांश लोगों तक सूचना पहुँच सके और जनता लाभान्वित हो सके। इसी क्रम में सम्राट् अशोक ने सासाराम में वर्तमान आशिकपुर (चंदन शहीद) पहाड़ी पर लघुशिलालेख लिखवाया था। यह पहाड़ी की चोटी से लगभग 30 फीट नीचे एक छोटी गुफा की उत्तरी दीवाल में लिखा गया है। यह शिलालेख ब्राह्मी लिपि में है। इसकी भाषा पालि के बहुत समीप है। इस महत्त्वपूर्ण अभिलेख को अंग्रेजी शासनकाल में भारतीय पुरातत्त्व संरक्षण विभाग द्वारा सन् 1917 में संरक्षित किया गया था।
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कैसे पहुंचें:
बाय एयर
निकटतम हवाई अड्डे - पटना, गया एवं वाराणसी.
ट्रेन द्वारा
निकटतम रेलवे स्टेशन - सासाराम.
सड़क के द्वारा
पुरानी जी.टी रोड पर अवस्थित है. पटना, आरा, दिल्ली, कोलकाता, रांची इत्यादी से जुड़ा है.